शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

वसंत ऋतु पर कविता

वसंत ऋतु पर कविता 

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना
थोड़ी सर्दी थोड़ी गर्मी
लगे मौसम बड़ा सुहाना ,

इंद्रधनुष ने खींची रंगोली
सज गई मधुऋतु की डोली
बिखरा दी अम्बर ने रोली
धरती मांग सजा खुश हो ली
छितरी न्यारी सुषमा चहुँदिश
कलियाँ घूँघट के पट खोलीं
ठूँठों पर आई तरुणाई
भर गई उपहारों से झोली,

देख हरित धरणी का विजन
हुआ मन मयूर मस्ताना
सरसों पीत चूनर लहराई
उसपर तितली का मंडराना
पी मकरंद मस्त भये मधुकर
हुए मद में मगन दीवाना
गूंजे विहंगों की किलकारी
कुञ्ज-कुटीर मलयानिल का आना ,

मह-मह महके बौरा अमराई 
मधुकंठी मीठी तान सुनाये
देख वासन्ती मादकता नाचे
वन,वीथिका,नीलकण्ठ बौराये
पछुआ-पुरवा की शीतल सुरभि
नशीला गन्ध चित्त भरमाये
पापी पपीहरा पिउ-पिउ बोले
पी की सुध विरहन को सताये ,

चित चकोर तिरछी चितवन से
अपने सजन से करे निहोरा
मूक अधर और दृग से चुगली
करे दम-दम सिंगार-पटोरा
प्रकृति नटी भरे उमंग अंग-अंग 
कंगना वाचाल हुआ छिछोरा
अनुभाव ना बूझे बलम अनाड़ी
कुंदन तन अंगार दहकावे मोरा ,

वसन्त की मंजुल दोपहरी में 
ग़र मेरे प्रियतम पास में होते
नहा प्रीत रंग में सराबोर
हम सारा अंग भिगोते ,
धरा वसन धारे ज़ाफ़री-हरा रंग 
अपना चिरयौवन दिखलाये
बहें उन्मादी फागुनी हवाऐं
चाँदनी उर पर बरछी चलाये ,

नववधू सी लगती वसुधा
सूरज प्रणय निवेदन करता
अवनि हुलास से इठलाती 
होंठों पर शतदल खिलता ,
टेसू,गुलाब,हरसिंगार पर मुग्ध 
पलाश,मौली,कचनार पर रीझता
चहुँओर बिछा मनमोहक इन्द्रजाल
दिग-दिगन्त सौन्दर्य दमकता ,

बड़ा सुहावन मन भावन
लगे वसंत तेरा आना 
थोड़ी सर्दी थोड़ी गर्मी
लगे मौसम बड़ा सुहाना। 

                            शैल सिंह

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