गुरुवार, 18 सितंबर 2014

कुछ शेर

             कुछ शेर


छोड़कर अपना सामा शहर आपके
छोड़कर जब चली मैं शहर आपका
अहदे-वफ़ा के महकते रस्ते वो लम्हें 
साथ आया याद का कारवां आपका ,

तेरी अता करूँ या परस्तिश ऐ मौला
कभी तो गुजारिश मेरी भी सुन ले
भर दे झोली मेरी भी मता-ए-ऐश से
मुज्ज़तर बहुत हूँ तारीक मेरा हर ले ,

भर दिए वक़्त ने तो हर ज़ख़्म लेकिन 
वक़्त गुजारने में क्या से क्या गुजर गई
क्या मालूम उन्हें शबे-फ़िराक़ की सदा
ख़ामशी ना जाने क्या-क्या निगल गई ।

अता--तारीफ़ , अज़ाब--मुश्क़िल ,
मता-ए-ऐश--सुख चैन की पूंजी
मुज्तर--घायल,दुखी,  तारिक--अँधेरा, 
शबे-फ़िराक़--जुदाई की रात 
                                  शैल सिंह   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...