शनिवार, 6 जुलाई 2013

क्या फायदा मौत तेरे आने के बाद

क्या फ़ायदा मौत तेरे आने के बाद


कण्ठों से गूँजे स्वर डूबती आवाज सी खंडहरों में खो गए
मंज़िल की चाह में ज़िंदगी अवसान के अंचलों में खो गए । 

जल रहा है दिल बेचारा आँखें झर-झर हैं बरसती हर घड़ी
बयां करतीं कहानी मौन हो,चमकती आँसुओं की ये झड़ी
मन में उठता शोर कहता चल छोड़कर दूर ये दुनिया कहीं
मत ख़्वाबों की गूँथ ताबीर मिला कहाँ मुक़्क़मल जहाँ कहीं ।

चमन में किसी के फूल न्यारे कहीं तर ख़ुश्बुओं से रात है
अरमां किसी के धुंध छाये किसी की खिलखिलाती रात है
कहीं तो चाँद सा रौशन जहाँ किसी को हर सताती रात है
कहीं वीरान है दिल का नगर किसी की गुनगुनाती रात है ।


ख़ुशनुमा नज़ारे हर तरफ मश्गूल कुछ न कुछ में हर कोई
हर नज़र में मस्त शोख़ियाँ,किसी पर दिल निसारे हर कोई
दहकते अंगारों पर काट रहा यहाँ,दिन-रात है  तनहा कोई
चुन शूल सारे ज़िन्दगी के आँचल भर देता फूल काश कोई ।

जहाँ रूप का सागर छलकता वहाँ क्या विसात है अब मेरी
जहाँ गुलज़ार भी गुलशन सदा उजड़ी क़ायनात है अब मेरी
रंगीन दुनियां में कल्पना का रंग सिर्फ़ प्रारब्ध में है अब मेरी
स्वप्नों के बिखरे साज पर अधूरे गीतों की जमात है अब मेरी ।


फ़ितरत कहाँ समझ सकीं बहकी हवा की ये बदगुमानियाँ 
आदत कहाँ बदल सकीं सुरभित रास्तों की ये मेहरबानियाँ
साथ ज़माने के सुर,ताल दूँ, आड़े आती रहीं मेरी खुद्दारियाँ
ज़माने का रुख़ मोड़ सकूँ भला आईं कहाँ ये तिमारदारियाँ ।

खो गए जलवे सभी कभी जिस शज़र पर बहारों को था गुमां
टूटकर शाख़ से औंधे पड़े,कभी जिन आशियों का मोहा समां
कभी जो ख़्वाब बुने सरगम सरीखे सपनों के शहर में खो गईं
सिरफिरे पगले दीवाने,मन की बेगानी ख़ुद ही कहानी हो गईं ।


ख़ुद वक़्त चलकर आया दर पर क्यों वक़्त गुजर जाने के बाद
आज़ हर दौर की मिली ख़ुशी है हर ख़ुशी बिखर जाने के बाद
अब रह गई है शेष कितनी ज़िंदगी की धूप ठहर जाने के बाद
अमर नाम,शोहरत,मिले क्या फायदा ऐ मौत तेरे आने के बाद ।

                                                       शैल सिंह 

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