ना मैं जानूं रदीफ़ ,काफिया ना मात्राओं की गणना , पंत, निराला की भाँति ना छंद व्याकरण भाषा बंधना , मकसद बस इक कतार में शुचि सुन्दर भावों को गढ़ना , अंतस के बहुविधि फूल झरे हैं गहराई उद्गारों की पढ़ना । निश्छल ,अविरल ,रसधार बही कल-कल भावों की सरिता , अंतर की छलका दी गागर फिर उमड़ी लहरों सी कविता , प्रतिष्ठित कवियों की कतार में अवतरित ,अपरचित फूल हूँ , साहित्य पथ की सुधि पाठकों अंजानी अनदेखी धूल हूँ । सर्वाधिकार सुरक्षित ''शैल सिंह'' Copyright '' shailsingh ''
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ज़िन्दगी पर कविता
ज़िन्दगी पर कविता दो पल की ज़िंदगी है दो पल जियें ख़ुशी से हंसकर मिलें ख़ुशी से खुलकर हंसें सभी से। बचपन में खेले हम कभी चढ़के आई जवानी फि...
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नई बहू का आगमन छोड़ी दहलीज़ बाबुल का आई घर मेरे बिठा पलकों पर रखूँगी तुझे अरमां मेरे । तुम्हारा अभिनंदन घर के इस चौबारे में फूल ब...
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आजा घर परदेशी करती निहोरा सावन की कारी बदरिया पिया तेरी यादों का विष पी नागिन हुई । नाचें मयूरी मोर पर फहरा-फहरा पिउ-पिउ बोले वन पापी...
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हजारों ख़्वाहिशें भी ठुकरा दूँगी तेरे लिए तूं ख़ुश्बू सा बिखर जा साँसों में मेरे लिए । ग़र मुकम्मल मुहब्बत का दो तुम आसरा तुझे दिल में नज़र ...
"आओ मिलजुल कर हम सब, तम् के नीचे नेह का दीप जलाएं"
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
dhanyabad koushik ji
हटाएंthanks
जवाब देंहटाएंdhanyabad
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