रविवार, 29 मई 2016

आँखें खोलो पथभ्रमितों

आँखें खोलो पथभ्रमितों 


सीमाओं पर डटे सिपाही कभी भेदभाव नहीं करते
अपना जान जोख़िम में डाल महफूज़ हमें हैं रखते

मौसम की परवाह न करते धूप,ताप गलन हैं सहते
माँ रज का कण शीश लगा,हमवतन लिए हैं लड़ते

जो कश्मीर का सुर अलापे जुबां काट रखें हाथों में
कभी ना आना भाई मेरे कैसी भी बहकाई बातों में

राम ख़ुदा में बांटा किसने क्यों नहीं समझ में आता
क्यूँ नहीं इस माँ के लिए हृदय में कोई भाव जगाता

जो माँ आँचल में आत्मसात की सदा तुम्हारा जीवन
उस माँ के लिए भरा क्यों मन में बदबू सा है सीलन

आँखें खोलो पथभ्रमितों दूजी 'जहाँ' की देखो तस्वीर
जहाँ इन्सानों का मोल नहीं खींची हुई देखो शमशीर

हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई का देश पुरातन ये भारत
यहाँ सब धर्मों का होता पूजन देश सनातन ये भारत

मत करो बग़ावत माँ से,नहीं जहाँ में कोई ऐसा देश
जहाँ स्वर्ग उतर स्वयं हिन्द का चूमा करता है केश

भेदभाव,मतभेद मिटा भाईचारे की अलख़ जगाओ
हम हिंदुस्तानी एक कुटुम्ब हैं दहशत मत फैलाओ ।

                                               शैल सिंह






बुधवार, 25 मई 2016

किसने किस्तों में लूटा है देश सबको है पता

           " नमो-नमो को समर्पित "




किसने किस्तों में है लूटा देश सबको है पता


[ १ ]

ऐसा कोहिनूर हीरा कभी ना मिलेगा
अरे देश वालों क़दर करना जानों
सत्ता की लोलुपता में मसीहा ना नकारो
महान इस विभूति की शिखा तो पहचानो
अंतर्मन के द्वार खोलो और देखो उजाला
क्यों तमस का आँखों पर परदा है डाला
जिसने विश्व की जुबान पर हिंदी हिंदुस्तान का
फूंक दिया है मन्त्र अपने गीता और पुराण का ।

[ २ ]

सियासत के दांव-पेंच से अब उतर रहा नशा
बदल रहा हमारा देश और सुधर रही दशा
गा रहीं फिजाएं मुस्करा रही दिशा
छंटी मन पर छाई बदरी,दीप्त हो रही निशा
बहारों को भी है भा गई खिज़ां की हर अदा
नदी,बावड़ी,तालाब हुईं कंवल-कंवल फ़िदा
किसने किस्तों में है लूटा देश सबको है पता
किसके चमके हुनर पर विश्व भी है दे रहा सदा ।

                                   शैल सिंह


मंगलवार, 24 मई 2016

नमन तुम्हें नन्हें ज्योतिर्मय दीपक

नमन तुम्हें नन्हें ज्योतिर्मय दीपक                                                                                                                       

निर्जन रजनी का तूं पथप्रदीप है
अन्तर्मन आलोकित करने वाला
जगमगाता दीप तूं पर्व पुनीत है

चाहे जितने जुगनूँ तारे चमकें
बजता हो आसमां में डंका चाँद का
पर दीपक की परिभाषा अभिन्न
तमकारा चीर सुख देता आनंद का

हरने को तिमिर का हर पीर तुम्हें
जलना दीपक तुम्हें निरन्तर
लिखा बदा में मालिक ने तेरे
नहीं कभी भी सुस्ताना पल भर ,

तुम द्वैत-अद्वैत के मिलन के दीपक
तुम्हीं हो तम् के वाहक दीपक
तुम्हीं हो मन के साधक दीपक
नमन तुम्हें नन्हें ज्योतिर्मय दीपक ,

बिन तेरे हर अनुष्ठान अधूरा
तुम बिन हर विधि-विधान अधूरा
तुम ही धरती के अमरपुत्र हो
हे माटी के राजवंश तुम जीवनसूत्र हो ,

माटी गुण से जीवन परिपूरित तेरा
सारी रात तपा देह,नेह आलोक विखेरा
जग का तमस निगल सलोने तूने
दिया सूर्योउदय के हाथ सिन्होरा ।

                           शैल सिंह

मंगलवार, 3 मई 2016

देशद्रोहियों की मति गई है मारी का

देशद्रोहियों की मति गई है मारी का



जहाँ सुबह होती अजान से कान गूंजे हनुमान चालीसा
जिस धरती पे राम-रहीम बसते गुरु गोविन्द और ईसा
जहाँ हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई में भाई-भाई का नाता
जहाँ की पवित्र आयतें बाईबिल ग्रन्थ कुरान और गीता ,

हम करते हैं नाज़ जिस वतन की नीर,समीर माटी पर
हम करते हैं नाज़ जिस चमन की खुशबूदार घाटी पर
जिसकी आन वास्ते शहीद हुए न जाने कितने नौजवाँ
उस मुल्क़ के मुखालफ़त गद्दार हुए बदजात बद्जुबां ,

पतित पावनी धरा पर भूचाल मचाया उपद्रवी तत्वों ने
अभिव्यक्ति की आज़ादी में पाजी अक़्ल लगी सनकने
भारत के टुकड़े होंगे कहते हैं कश्मीर नहीं भारत का
बेलगाम नामुराद देशद्रोहियों की मति गई है मारी का ,

                                             

इक दिन बिखर जायेंगे अभिव्यक्ति की आज़ादी वाले दहर में
देखना टूटे हुए जंजीर की कड़ियों की तरह
उठेंगी दश्त में घृणा भरी निग़ाहें बस इन सब पर
कर्ण बेंधेंगी हिक़ारत की आवाज़ें,चिमनियों की तरह  ,

अरे हम नहीं ख़ामोश बैठने वालों में से हैं
वामपंथियों की हवा निकालने वालों में से है
ये खुशबयानी और ख़ुशख़यालियाँ पाले रखो
हम नहीं तुम्हारे मंसूबे क़ामयाब होने देने वालों में से हैं ,

हम सदा मोहब्बत बांटने की बात करते है
कुछ लोग अहले सियासत की बात करते हैं
हमारा पैग़ाम सवा सौ करोड़ देश की जनता को है
चलो देशद्रोहियों को मुल्क़ से खदेड़ने की बात करते है ।

                                                             
  

रविवार, 1 मई 2016

आतंक की घृणित विभीषिका पर मेरा अंतर्द्वंद

आतंक की घृणित विभीषिका पर मेरा अंतर्द्वंद 


नित देख जगत का आहत दर्पण
पन्नों पर मन का दर्द उगलतीं हूँ
अब जाने कब होगा जग प्रफुल्ल 
सोच कविता में मर्म विलखती हूँ ,

काश करतीं व्यथित शोहदों को
आतंक की चरम घृणित क्रीड़ाएं
कोई मुक्तिदूत बनकर आ जाता
हर लेता जग की क्रन्दित पीड़ाएँ ,

कभी ग़र घोर निराशा के क्षण में
कहीं से छुप झांक पुरनिमा जाती
पुनः अगले पल कुछ घट जाता रे
जैसे ही सुख भर पलकें झपकाती ,

जब-जब हँस उषा की लाली देखा
कलह की सुख पर चल गई आरी
फिर काली निशा हो गई डरावनी
सुनकर कुत्सित षड्यंत्र की क्यारी ,

भाटे जैसी उठती हिलोर हृदय में
व्यूह तोड़  लहरों में बह जाने को
जग का दुर्दिन हश्र देख मचलता
विवश कंगन कटार बन जाने को ,

रुख रहेगा अलग-थलग भावों का 
ग़र आपस में ही लड़ते रह जायेंगे
जो भी आदि बची जी दीन दशा में
विष सुधा विद्वेष कलुष कर जायेंगे ,

सुरभित जीवन में मची कोलाहल
सर्वत्र चीत्कार रहीं गलियाँ-गलियाँ
भय से भूल गए खग,पक्षी कलरव
दहशत में उषा,ख़ौफ़ में है दुनिया 

ख़लल,शांति अमन को निगल गई
निर्जन नीड़ों में डोल रहे चमगादड़
नभ कण भी बरसा रहे हैं अश्रु बिंदु
मची हुई चहुँओर है भीषण भगदड़ ,

यदि होता बस में ग़र कुछ भी मेरे
भरती जग आँचल सुख का सागर
मिटा तमिस्रा उर-उर की,धर देती
हर अधरों पर  किसलय का गागर ,

सुख समरसता ठिठक गई मानो
पथभ्रष्टों की निर्भीक निर्दयता से
हो रही प्रकम्पित धरणी,अणु भी
मस्तिष्क की दुर्भिक्ष दानवता से ,

विक्षिप्त मानसिकता की ज़द में
जगत की दिनचर्या धधक रही है
लगता बहुत अनर्थ है होने वाला
निर्बाध आँख दाईं फड़क रही है ,

चैतन्य हो जाओ अरे सोने वालों
नव प्राण फूंकना मृत स्पन्दन में
समता की करनी है मुखर वाणी
शंखनाद गूंजे निस्सीम गगन में ,

बेवजह दहक रही सारी दुनिया
आतंकवाद की भीषण लपटों से
कहीं 'तू-तू ' 'मैं-मैं' के विलास में
मिट न जाएँ रे आपसी कलहों से ।

सुधा--अमृत

                               शैल सिंह 
















मंगलवार, 15 मार्च 2016

'' बहुत प्यारी हमको अपनी सरज़मीं ''

'' बहुत प्यारी हमको अपनी सरज़मीं  ''

जाविदाँ ,जहाँ आफरीं हिन्द मेरा वतन
जहाँगीर जाविदाँ मेरा ज़न्नत सा चमन
नहीं ऐसा जहाँपनाह कहीं भी जहाँ में
सारा जहाँआरा बाअदब करता नमन ,

जाके देखो जहांगिर्द नहीं कहीं पाओगे
ऐसा जमील अौ जमाल है गुलशन मेरा
ज़फ़ा जालसाजी छोड़ो ना गद्दारी करो
जवान स्वालिह बनो मत किताली करो ,

आँखें दिखाने की जुर्रत ,जसारत करो
ना वतन से मेरे जुलसाजी,गद्दारी करो
पल में करेंगे जिलावतन सुनो काफिरों
हम जाँनिसार वतन  पर सुनों जाहिलों ,

हम जाविरों को कभी माफ़ करते नहीं
हम हैं कितने जलाली ये जरा जान लो
हम हैं जाबांज जब्बार करने लेने वाले
छोड़ो  जब्र जबरन कहा जरा मान लो ,

जम्हूरी सल्तनत नहीं हिन्द जैसी कहीं
मेरे भारत माँ की जन्नत सी है सरजमीं
जवाँ दौलत,जवाहरों का मेरा ये देश है
जवांसाल,जवाँमर्दों का यहाँ समावेश है ,

जाविदाँ --शाश्वत ,अविनाशी
जहाँआफरीं --संसार को रचने वाला
जहाँगीर--चक्रवर्ती ,विश्वविजयी
जहाँपनाह--संसार की सुरक्षा करने वाला
जहाँआरा--संसार प्रशंसक
जहांगिर्द--दुनिया भ्रमण कर
जमील अौ जमाल--मनोहारी सौन्दर्य
जफा--अत्याचार  , जवान स्वालिह--नेक इंसान
किताली --रक्तपात,युद्ध
जसारत --दुस्साहस ,धृष्टता
जुलसाजी--धोखेबाजी , जिलावतन---देश निकाला
जाँनिसार---जान न्योछावर ,  जाविरों---अन्यायी ,अत्याचारी
जलाली --प्रतापी शान वाला ,  जब्बार--विजय प्राप्त
जब्र ज़बरन --जोर,जुल्म,उत्पीड़न
जवांदौलत जवाहरों--ऐश्वर्यवान ,रत्नमणि
जवांसाल,जवाँमर्दों---नवयुवा,साहसी,हौसलामंद  ।

                                                  शैल सिंह 

रविवार, 6 मार्च 2016

'' वर्तमान परिदृश्य पर मेरे विचार ''

                             '' वर्तमान परिदृश्य पर मेरे विचार ''

             एक इंदिरागांधी थीं कि अपनी दूरदर्शिता से पाकिस्तान का विभाजन कर दो राष्ट्रों का निर्माण कर भारत को अक्षुण्ण बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ीं , मुझे तरस आता है राहुल गांधी की बुद्धि और विवेक पर जो इस देश को इस देश के लोगों को अभी तक नहीं समझ पाये और समझने का प्रयास भी नहीं कर रहे अपनी दादी का नाम तो भुनाते हैं पर उनके उसूलों,आदर्शों ,सिद्धांतों का अनुसरण नहीं करते ,जिस देश को हमारी महान नेता श्रीमती इंदिरागाँधी ने अपने खून पसीने से सींचा हो उसी दूरदर्शी महिला का अपना नाती इतना घृणित और राजनैतिक गुंडेपन का परिचय दे रहा हो और उस बहरूपिये का समर्थन कर रहा है जो ये कहता है कि रोहित वेमुला मेरा आदर्श है मैं उस मंदबुद्धि से ये पूछना चाहती हूँ कि हमारे संविधान में आत्महत्या का क्या स्थान है हमारे संविधान में आत्महत्या को एक जघन्य अपराध माना गया है अरे आत्महत्या करने वाले तो कायर होते हैं और ये कायर लोग ही जब तुम्हारे मार्गदर्शक है तो बात ही क्या कहने ,हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने क्या इसी कृत्य के लिए देश सेवा में खुद को कुर्बान किया । हमारे संविधान निर्माता बाबासाहब अम्बेडकर कभी भी ऐसे कायरों को इस देश में नहीं देखना चाहते थे वे तो सभी वर्गों को शक्तिशाली और खुशहाल देखना चाहते थे ,पर आज उनके नाम का दुरुपयोग कर कुछ चन्द लोग शक्तिशाली और धनवान बनना चाहते हैं जैसे इन्हीं चंद लोगों के ही बाबा साहब अम्बेडकर थे देश की और जनता के वे कुछ भी नहीं लगते थे कुछ लोग उनपर अपना कितना हक़,अधिकार जताते हैं सिर्फ अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए  ।
   मैं सीताराम येचुरी से ये पूछना चाहती हूँ कि जब इस देश से आप लोगों के शाख की बलि चढ़ गई तो एकमात्र आशा की किरण कन्हैया में दिखाई देने लगी ,आप के जिन सिद्धांतों ने पैंतीस वर्षों में बंगाल को अत्यंत पिछड़े राज्यों की श्रेणी मैं खड़ा कर दिया ,अब पुनः उसी छिछोरी विचार धारा को स्थापित करने के लिए कन्हैया के कन्धों का सहारा दिखाई दे रहा है पर याद रखिये उसी बंगाल के लोग अब बुद्धिमान हो गए हैं अब वे अपनी पुरानी भूलों को नहीं दुहरायेंगे । आप और आप जैसे अन्य लोग ढोल,तासे पीटते रहिये देश जागरूक हो चुका है आप लोग जितनी ही विवादस्पद बातें बातें करेंगे ,देशभक्त और भी मजबूत और एक जुट होते जायेंगे ,हर किसी को अपनी माँ की अस्मिता प्यारी होती है  सीताराम येचुरी और उनके मुट्ठी भर प्रशंसक ,मैं तो कहूँगी कि ये सब सफेदपोश नक्सलाइट हैं जिनसे भारतीय सुरक्षातन्त्र जद्दोजहद और संधर्ष कर रहा है ,केवल पार्टीबंदी और गोलबंदी कर ये लोग देशद्रोहियों का साथ देकर देश के विकास को रोक नहीं सकते यह देश आगे बढ़ चला है और आगे ही बढ़ता जायेगा । आँखें खोलकर देख लो विरोधियों वर्तमान सरकार की सफल विदेशनीति का असर कि आज पाकिस्तान भी अपने आतंकवादियों की सूचनाएं भारत के साथ साझा कर रहा है । ''हर घर में अफजल पैदा होगा '' के विपरीत इस देश के घर-घर में मोदी जी और अब्दुल कलाम जी जैसे महारथी पैदा होंगे । जिस पर देश नाज़ करेगा ,और आप लोग जिस लाल झंडे की बात कर रहे हो वह इतिहास में भी नहीं इतिहास के डस्टबिन के पन्नों में दबकर रह जायेगा यह देश चन्द भौंकने वालों का नहीं वरन देेश पके प्रति अच्छी भावना रखने वाला सवा सौ करोड़ जनता जनार्दन का है और ये लोग विकास पुरुष का साथ देने के लिए अगली पंक्ति में खड़े हैं ,कन्हैया येचुरी,केजरी नितीश ये लोग एक दिन हाशिये पर आ जायेंगे ,भारत माँ का मखौल उड़ाकर भारत माँ के लोगों से ही समर्थन मांगते शर्म आनी चाहिए ,बार-बार भूल नहीं होगी अब विहार के लोग भी अपने कृत्य पर पछताते होंगे ,कन्हैया का भोंडा भाषण नितीश को बेहद प्रभावशाली लगा क्योंकि एक मदारी को मदारी विरादरी ही तो पसंद करेगी ना ।कन्हैया तो खुद ही किसी टीशन का तमाशा दिखाकर भीख मांगने वाला भिखारी लग रहा था वह मोदी जी पर व्यंग्य बाण छोड़कर अपने आजू-बाजू की भीड़ की मनोरंजन का साधन मात्र था ,अपने छिछोरी शख्सियत का भाषण की जादूगरी से तमाशबीनों के बीच अपना भाव बढ़ा रहा था ये भीड़ केवल मजा के लिए थी कन्हैया सोच लो ये कभी साथ नहीं देंगे '' जहाँ मार पड़ी तहाँ भाग पड़े '' वाली कहावत सुने हो ना ,कितना बहक-बहक कर बहस-बहस कर कह रहा था जब तक चना रहेगा आना जाना लगा रहेगा ,अरे मैं तो कहती हूँ की इसका चुरकना बंद करने के लिए फिर से जेल में ठूंस देना चाहये सारी दादागिरी भूल जायेगा ।
     इसने हमारी न्याय व्यवस्था को ललकारा है हमारी न्याय व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया है । अरे मूर्ख इस देश की न्याय व्यवस्थ इतनी अनूठी है इसका कोई विकल्प नहीं है, ऐसा कहीं देखने को नहीं मिलेगा ,तूने तो कोर्ट की आज्ञा की अवहेलना की है ,पिंजड़े में तड़प रहा था पिंजड़े से निकलते ही भीड़ के बलबूते चिंघाड़ने लगा । कन्हैया बनकर गोपी,गोपिकाओं का हुजूम इकठ्ठा कर ,तुम्हारी बेहूदी हासलीला का बेहूदा प्रदर्शन एन डी टी वी वालों ने दिखाया जिसमें नचनियां जैसा ही एकदम तू लग रहा था ,किससे बराबरी करने चला है अपनी औकात को तो तौला होता ,याद रख पथविहीन जो सपना पाला रखा है वो कभी पूरा नहीं होगा क्योंकि तूने सवा सौ करोड़ देशवासियों की भारत माता का अनादर और अपमान किया है कहने को बहुत कुछ है पर  ......तुझे बख़्श देती हूँ कि अपनी गन्दी सोच और घिनौनी मानसिकता अपने पास रख हमारे नौजवानों को भटका मत ,वैसे भी भोलेभाले लोग लच्छेदार भाषणों को सुनकर आविर्भूत हो जाते हैं और भीड़ की तरफ आकर्षित हो जाते हैं पर वो कुछ ही लोग होते हैं ,ये भीड़ तो वो है जैसे बहती गंगा में सबका हाथ धोना जिसे तू अपनी ताकत बना बैठा ,देख ले तेरे विरुद्ध लामबन्द होकर बोलने वालों की तादात इंटरनेट,ब्लॉग,फेसबुक,ट्वीटर इत्यादि पर तेरे प्रति और तेरे चहेतों के प्रति ज़हर का ज्वालामुखी ।
             गरीबी,भुखमरी,बेरोजगारी की आजादी के लिए परिश्रम करना पड़ेगा दिल,दिमाग को ठिकाने लगाकर शिक्षा हासिल करनी पड़ेगी हाथ पर हाथ धरकर निठल्लों को आरक्षण भी चाहिए और हर तरह की आजादी भी चाहिए जो मर-मर कर जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं उनका भी हिस्सा आरक्षण की भट्ठी में जा रहा है कोढ़ियों को सब कुछ चाहिए,गर इन्हें आजादी चाहिए तो मुक्त कर देना चाहिए हर चीज से वंचित करके ।
                                                                      शैल सिंह

   

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...