मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

जानें देश का हित किसमें

         जानें देश का हित किसमें 

मोदी-मोदी बस मोदी का लहर जगा है जाग गई है जनता
अब किस बात की देर भलाई सौंपो मोदी के हाथों में सत्ता,

पंथ,जाति,धर्म का कुष्ठ रोग मिटा,खुला बुद्धि विवेक का पत्ता
'विजय 'चरण चूमता कद्दावर मोदी का देकर विपक्ष को धत्ता,

इन्तज़ार लहरा रहा लाल किले पर हाथों मोदी के तिरंगा लत्ता
चेत लो अब से भी वरना बह जायेगा देश ये जैसे पानी में गत्ता,

दंगा,हिंसा करवाते राजनीतिक विरोधी लगता मोदी पर धब्बा
सांप्रदायिक,नकारात्मक पहलू दर्शाना देख रहा सच्चाई रब्बा,

एक जुट होगा वह दिन दूर नहीं अब जिस दिन देश का जत्था
करिश्माई,स्वच्छ,निराले नेता पर वर्ग विशेष भी टेकेगा मत्था,

बाकि है कसर थोड़ी यदि भ्रमित भाई भी रक्खें सिर पे हत्था
कर विपक्षियों को अनसुना दिल मिला लें जैसे पान में कत्था,

आशंका से घिरे बहकावे में बागीजन अंतर की सुनें अलबत्ता
किसमें खुद नजर आता दूरदर्शिता, स्पष्टता,दृढ़ता,प्रतिबद्धता,

फांस निकालो दिल से हो केवल तुम 'भारतीय' लिखा लो पट्टा
बहुमत से जीताकर देखो भाई इक बार लगा लो ऐसा भी सट्टा,

दल छोड़ सुर विरोधी राग छेड़,हुआ क्या ऐसा प्राप्त केशु बप्पा
इक दिन गुणगान करेगा नरेन्द्र मोदी का धरती का चप्पा-चप्पा ।
                                                                                            

शैल सिंह                                                


शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

गूंज उठता है इक दर्द भरा गीत सुनी वादियों में
जब हर सुबह हर शाम की ख़ामोशी में ढलती है,
उभर उठता है ख्यालों में भी इक मासूम चेहरा
जब सिसक कर दर्द जवां हो करवट बदलती है,
मचल उठता है होठों पे चिर-परिचित सा नाम
दरक कर जब जिंदगी लब से आह निकलती है ।



गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

संजीवनी

        संजीवनी

आज हृदय के द्वार पर हलचल
मैंने नीर भरी आँखों से देखा
पथ पर जाते एक बटोही को
था जो प्रियतम के रूप सरीखा ।

सिमट गया आँचल में आकर
पानी मान सरोवर का फीका
देखो प्रणय के मुझ जैसे मतवाले
मोती सी झर-झर गंगाजल का ।

डाली पर इतराती कलियाँ जो
रवि की किरणों में खिलती हैं
दुःख दर्द किसी के जीवन का
वो मुस्काती अधरों से कहती हैं ।

सुमनों के प्रेमी हे भ्रमरा तुम
उनक अंतर भावों को पढ़ लेना
जो मूक कहानी कहती हों उनके
प्रियतम से दूर देश में कह  देना ।

शब्दों में बिखराकर अन्तर गाथा
शिलाओं की सतह पर लिखती हूँ
पथ जाने वालों बतलाना उनको
सपनीले विश्राम गेह को चलती हूँ ।

निर्भय मृत्यु की मुझ पर महिमा
उसके तुमुल गर्जन से डरती हूँ
पर सांसों के विश्रृंखल पल में भी
मौत को संजीवनी दिया करती हूँ ।
 


मंगलवार, 27 नवंबर 2012

''गीत''

                 गीत

बंजर उर में प्रीत जगे जो गीत बन गए
जब से सच्चे तुम मेरे मनमीत बन गए ।

       उन्मद यौवन था ढला शाम सा
       जिजीविषा कुम्हलाई-कुम्हलाई
       प्रतिफल में केवल छली गयी मैं 
       हर कलि थी आशा की मुरझाई ।

हसरतों की सोई कलियाँ फिर जाग गईं
जब से बांहें तेरी गले का मेरे हार बन गईं ।

      सुख दुःख की लड़ियाँ साथ लिए
      टूटे नातों का मौन अभिशाप लिए
      बढ़ रही अकिंचन थी जीवन पथ
      पराजय का प्रतिक्षण ह्रास लिए।

दुर्गम राहों पर ढेरों पुष्प अवतरित हो गए
जब से उर मृदु गंध तुम उच्छ्वसित कर गए ।

      रच दिया रीति में क्वाँरे  सपने
      अंगों में रस घोल गई पुरवाई
      यौवन की बगिया महक उठी
      रससिक्त पुनः हो गई तरुणाई।

अनुराग तेरे,मेरे अधरों के संगीत बन गए
जब से नगर वीराना तुम नवनीत कर गए ।

      निष्ठुर जग से शिकवा गिला नहीं
      खोने मिलने का सिलसिला यही
      मृदु प्रणय का पाकर नेह निमंत्रण
      पुलक थिरक उठा मन कण-कण ।

इन्द्र धनुषी रंग बिखरा अभिसिक्त हो गए
जब से कपोल गुदना तुम मुखरित कर गए ।

      चमक रहा नभ का हर कोना
      जनम-जनम का तेरा अपना होना
      धड़कन में कुछ-कुछ बोल गयी
      मनभावन मुस्कान है डोल गयी ।

मन उपवन रीता सावन सुरभित हो गए
जब से स्नेह वर्षा मन तुम सिंचित कर गए ।

     मधु बैनी सी गीत सुनाउंगी मैं
     करके सोलह सिंगार मिलूंगी  
     प्रीत सागर से भरी मन मटकी
     काली रातों में चाँदनी छिटकी ।

हाथ छुड़ाकर हार जीवन के जीत बन गए
जब से अमर बन्धन बांध तुम हीत बन गए ।

                                                 ''शैल सिंह''



  

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

'नारी की फुफकार'

    नारी की फुफकार

आज की हर अबला भारत की
अब सबला बनकर जागी है
निरीह दया की मूर्ति ना समझो 
दबी चिन्गारी बन गयी बागी है । 

बहनों उठो पुकारता समय 
पद्मिनी सा जौहर दिखलाओ 
दुर्गावती,लक्ष्मीबाई सरीखी 
समय पर रणचंडी बन जाओ । 

अब गया वक्त देहरी भीतर 
बैठ सिंगार सजाने को 
माथे तिलक लगा मचली 
चूड़ी तलवार उठाने  को । 

तोड़ कर बन्धन पायल का 
और सुहाग की लाली का 
माँ अम्बा की ज्वाला बन 
हाहाकार मचा दे काली का । 

भारत का गौरव मेरा यौवन 
उसकी अस्मिता मेरी जवानी 
शस्य श्यामला मातृभूमि पर 
शत बार तरुणाई मेरी कुर्बानी । 

बाँझ,निपूती मत कह माँ 
कुछ अस्तित्व हमारा मानो 
हम भी ज़िगर के टुकड़े हैं 
हमें सुता नहीं सुत जानो । 

आँधी में भी जला करेगी 
निष्कम्प दीप की ज्योति 
सोते से अब तो जगा दिया 
माँ क्यों क्लान्त हो रोती । 

लिंग की भयावहता ने ललकारा 
चलो माँ का कर्ज़ उतारें 
दुहिता कपूत से लाख भली 
इस कटु मिथ्या की बाती बारें। 

लिप्सा में डूबे मानसिंह तो 
बहुत यहाँ पर आज भी हैं 
वह बहन नहीं जो छलना बन 
छल,जाये यह लाज भी है। 

उठा श्रद्धा के अतल सिन्धु में 
दमन का ज्वार धधकता आज
पृथ्वीराज की जोशीली आँखों का
सोणा सपना बन कर नाच ।  

राणा की बेटी हरगिज़ नहीं 
अब घास की रोटी खायेगी 
आज वही तोतली सयानी 
प्रण के रण में चेतक दौड़ायेगी । 

राष्ट्र हमारा गुजर रहा है 
भीषण षड़यंत्र के नारों से 
आओ भरें चेतना जन-जन में 
सुन्दर भावों के उद्दगारों से । 

जगो जगत की वीर बेटियों 
चुनौतियों से संघर्षिणी बनो 
देश भक्ति का उन्माद जगाकर 
दिशा-दिशा की सम्प्रेषिणी बनो । 

                                          'शैल सिंह' 

 

  


    


रविवार, 11 नवंबर 2012

''मन से मावस की रात भगाएं'

मन से मावस की कारी रात भगाएं

आओ हम सब मिलजुल कर 

तम् के नीचे नेह का दीप जलाएं ,

भरें तमस के आँचल उजियारा

घर पूनम की रात मीत बुलायें ,

स्नेह की ऐसी अलख जगायें

मन से मावस की रात भगाएं ,

इक दूजे के ग़म शूल खींचकर

दुःख-दर्द गले मिल बांटें हम  ,

कण-कण प्रकाश की लौ फेरकर 

शुभ दीवाली सुपर्व मनायें हम ,

करें बात जब लगे संगीत सा

झिलमिल फूटें सितारे फुलझड़ियों सा ,

रोमांच भरा हो  मिलन हमारा

लगे अट्टहास पटाखों की लड़ियों सा ,

समत्व सत्ता का आलोक बिछाकर

घर-घर जाकर मतभेद मिटाकर ,

खील बताशे खा-खाकर दे बधाई

खुशियों की मन में लहर जगाकर ,

बरस-बरस का महान पर्व बन्धु ये 

कड़वाहट का आओ म्लेच्छ भगायें ,

स्नेह की धार से नवकिरण बार 

एकता का जगमग दीप जलायें । 

रविवार, 4 नवंबर 2012

'शबनमीं मोती'

                  शबनमीं मोती

अश्क़ों का जाम पीते उम्र तन्हा गुजार दी 

एहसान आपने जो ग़म मुफ़्त में उधार दी। 

       वफ़ाओं के क़तरे भीगोयेंगे कभी दामन तेरा

       जब चुपके से तोड़ेंगे ज़ब्त ख़यालों का घेरा। 

लाखों इनायत करम आरजूवों प्यार में 

लम्हा-लम्हा काटा सफ़र है बेक़रार में।

         बहुत अख़्तियार था बेज़ुबाँ दर्द पे साथियों 

         उदास टूटे नग़मों की जमीं पे गर्द साथियों। 

मुस्कराती रही दिल जला बेशरम चाँदनी 

मखमली आँचल भिंगोती बेमरम चाँदनी। 

          

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...