रविवार, 6 सितंबर 2020

" सफलता पर कविता "

सफलता पर कविता

मेरे अपनों ने की ना कभी कद्र हुनर की 
सब समझते रहे कतरा मैंने इसके वास्ते
विस्तार समंदर सा था जबकि मुझमें भी 
बह दरिया की तरह बना लिए मैंने रास्ते ।

आसमान छूना इतना आसां ना था मग़र
दिशा गंतव्य को देना शिद्दत से अड़ गये
जूझा संघर्षों से अकेले कोई ना साथ था
सार्थकता में जाने कितने रिश्ते जुड़ गये ।

मंजर जो हौसलों का तरकश दिखाया है
ऐ परिहास करने वालों देखो अंत हमारा 
कोशिशों के तीर से मैदान में उम्मीदों के
बाँधे जीत का सेहरा रच वृतान्त सुनहरा ।

भटकती अभिलाषाएं भी उत्साह बढ़ाईं
मन का विश्वास,साहस फौलादी हो गया 
दीयों की तरह जल-जल हर रात तपी मैं
हर्ष दहलीज मेरी चूमा जज्बाती हो गया ।

कतरा--बूंद,  सार्थकता--सफलता,
वृतान्त--इतिहास,   हर्ष--खुशी
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह


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