रविवार, 29 मार्च 2020

कोरोना पर कविता

कोरोना पर कविता


कोरोना-कोरोना गुस्ताख़ी अब करो ना
कृपा कर जहाँ से आई वहीं जा रहो ना ,

हद हो गई है अब तेरे ज्यादती की
जिम्मेदार तूं ही जग के त्रासदी की
सुस्त ज़िन्दगी की चौपट कारोबार
रोजी-रोटी ठप्प की ख़त्म रोजगार
सूनसान सड़कें,गलियां,डगर लगे सूना
कोरोना-कोरोना गुस्ताख़ी अब करो ना
कृपा कर जहाँ से आई वहीं जा रहो ना ,

संक्रमण का ख़तरा बढ़ा कमीनी
रौनक बाजारों,दुकानों की छीनी
चहुँओर मरघट सा पसरा सन्नाटा
मन करे कोरोना मारें खींच चाँटा
श्मशान सरीखा शहर का कोना-कोना
कोरोना-कोरोना गुस्ताख़ी अब करो ना
कृपा कर जहाँ से आई वहीं जा रहो ना ,

दवा ना दुवा ना रोकथाम इसका
डर के मारे इंसा घर में है दुबका
ऊबन हो रही है घुटन हो रही है
बैठै-बैठे कब्ज़,अपचन हो रही है
मचाई त्राहि-त्राहि,कैसा कर जादू-टोना
कोरोना-कोरोना गुस्ताख़ी अब करो ना
कृपा कर जहाँ से आई वहीं जा रहो ना ,

दहशत में दुनिया ख़ौफ़ में हैं लोग
पलायन कर रहे डरे सहमे हैं लोग
मानवों पे चीन तूने किया है प्रयोग
अस्त्र ऐसा ईजाद कर दिया है रोग
जाकर चीन में ही कोहराम मचाओ ना
कोरोना-कोरोना गुस्ताख़ी अब करो ना
कृपा कर जहाँ से आई वहीं जा रहो ना ,

ज़िंदगी को जीने की कैसी सज़ा दी
अपनों के संग तूने फासला बढ़ा दी
लॉकडाउन करना हो गयी मजबूरी
घर में ही पड़े रहना हो गया जरुरी
मामूली सर्दी,खाँसी,छींकों से भी डरना
कोरोना-कोरोना गुस्ताख़ी अब करो ना
कृपा कर जहाँ से आई वहीं जा रहो ना ,

मारी अपने टाँगों में चीन कुल्हाड़ी
करतूत पर होगी फज़ीहत तुम्हारी
धरी की धरी रह जायेगी चालाकी
बहुत घटिया की है तूने नाइंसाफ़ी
करेगा ना संग तेरे व्यापार जग सुनो ना
कोरोना-कोरोना गुस्ताख़ी अब करो ना
कृपा कर जहाँ से आई वहीं जा रहो ना ।

रुख हवा का मोड़ेंगे हमें है भरोशा
निपटेंगे चांडाल से कोई ना अंदेशा
ऐसी महामारी को पस्त हम करेंगे
नाम हिंदुस्तान कत्तई ना हम डरेंगे
हमारे पदचिन्हों पे चलेगा जग सुनो ना
कोरोना-कोरोना गुस्ताख़ी अब करो ना
कृपा कर जहाँ से आई वहीं जा रहो ना ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह





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