" पी ज़हर का प्याला भी ये दर्द मरता नहीं "
मृदुल अहसासों का असंख्य उपहार दे
ग़म,दर्द, ख़ुशी प्यार का अनन्य संसार दे
प्रीति की ज्योति आँखों में जलाकर गये
चैन दिन का नींद रातों की चुराकर गये ।
मधुर बोलों से कर के गुञ्जार श्रवणेंद्रियाँ
अपने आधीन कर श्वांसें,धड़कनें,इन्द्रियाँ
छू गात अनुराग से चित्त गुदगुदाकर गये
मंजु कलिका उर में प्रेम की उगाकर गये ।
दिल,ज़िगर,क़रार सब अपने संग ले गये
शूल इंतज़ार के एवज में वे बेअंत दे गये
रंगीन ख़्यालों के भंवर में उलझाकर गए
तृषित नयनों में भोली छवि बसाकर गए ।
तृषित नयनों में भोली छवि बसाकर गए ।
शरीर मेरा है मगर जीव मुझमें मेरा नहीं
उनके रंग में घुल बह रही अधीर मैं कहीं
ले परिधि में बांहों के ज़न्नत दिखाकर गए
अनुराग का आसव नैनों से पिलाकर गए ।
लगे सरसराहट हवा की मुझे आहट तेरी
राह भूले गली का भला किस बाबत मेरी
क्यों झूठे वादों का दिलासा दिलाकर गए
सितारे आसमानी दिवा में दिखाकर गए ।
चाँद,तारे क्षितिज के जाने गये सब कहाँ
थे जो कभी साक्षी हमारे प्रीत के दरम्याँ
भीड़ में भी गुमसुम रहना सीखाकर गए
हसीं ज़िन्दगी वे मेरी बेहिस बनाकर गए ।
हर घड़ी क्यूँ सांस में वो याद बनकर रहे
यादों की भी काश यदि कोई सरहद रहे
न कितना करना सफ़र तय बताकर गए
न पता क्या अपने शहर का बताकर गए ।
न पता क्या अपने शहर का बताकर गए ।
सुना है शहर में आजकल वो आये हैं मेरे
चल पड़ी मिलने बेधड़क तोड़ सारे पहरे
इस क़दर वे मुखड़ा मुझसे छुपाकर गए
पीर और अतिशय हृदय की बढ़ाकर गए ।
पी ज़हर का प्याला भी ये दर्द मरता नहीं
खा बेवफ़ाई के ज़ख़म भी संभलता नहीं
शराफ़त से वो हजारों ग़म बिछाकर गए
किस ज़ुर्म की सजा में ऐसे तड़पाकर गए ।
किस ज़ुर्म की सजा में ऐसे तड़पाकर गए ।
आसव---मदिरा
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
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