बुधवार, 15 जनवरी 2020

गीत रचना

" कैसे बतलाऊँ हया की बात "


वो मेरे कजरे की हैं धार
तभी तो नैन मेरे कजरारे 
हर कोई झांके मेरी आँखों में 
छुप-छुप नैन मेरे निहारे
पूछें छवि किसकी इसमें आबाद
बता दे ज़ेहन में कौन बसा रे
अँधेरी रात में भी चाँद सा रौशन
दमकता मुखड़ा क्यों मेरा रे 
कैसे बतलाऊँ शर्म से बोझिल
कि कैसे पलकें झुकी उठीं उजियारे ,

वो मेरे रत्नों के भण्डार
तभी तो गले मोतियों की हारें
वो मेरे सूरज हैं रक्ताभ
तभी तो चाँद सा नूरां चेहरा रे
मेरी चंचल चितवन घनकेश घटा 
नैनों की झील में वो आकण्ठ डूबा रे
बिन सिंगार के भी हैं लोग पूछते
क्यों मेरा रूप निखरताा जा रहा रे 
कैसे बतलाऊँ हया की बात
कि हुए क्यूँ रक्तिम मेरे रूख़सार रे,  

वो बोल मेरी गीतों  के
तभी तो कण्ठ मेरे रसधारे
वो मेरे सुन्दर सुरों के साज
तभी तो स्वरों में घुले ताल चटखारे
बनी उनके लिए फ़नकार
तभी तो पाजेब मेरी झनकारे
मेरी अभिव्यक्तियों के भाव अलख
कैसे होते इतने मुखर मंजुल अन्दाज़ रे 
कैसे बतलाऊँ उनके ख़यालों का भीना 
मेरी रोम-रोम में बसा मधुर उन्माद रे। 

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

6 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 16 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार आपका रविन्द्र जी पाँच लिंकों का आनन्द में मेरी रचना शामिल करने के लिए

      हटाएं
  2. सुंदर संयोग शृंगार की सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...