'' शमन कर दे तपन दिल की वो सावन नहीं आता ''
दीप आशाओं के पलकों पर जो हमने जलाए हैं
जिनकी राह में दरीचों के ना कभी पर्दे गिराए हैं
हवा की ज़द में जलती रहती निर्धूम लौ नैनों की
आईना पूछता तस्वीर किसकी दीद में बसाए हैं ,
आईना पूछता तस्वीर किसकी दीद में बसाए हैं ,
रही ग़फ़लत में कि वह रूह से हमको भुलाए हैैं
पर दिल के तहख़ाने में मौज़ूद वो डेरा जमाए हैं
उम्र भर जिसकी सुध में कसकी रैन सुलगी भोर
वो दिल के दरों-दीवारों पे अक्सर मेला लगाए हैं ,
वो दिल के दरों-दीवारों पे अक्सर मेला लगाए हैं ,
क़बीले के सभी सोते हम रातों की नींद गंवाए हैं
वो गुजरेंगे गली-कूचे से ख़्वाब बेनज़ीर सजाए हैं
वो ढलती सांझ के इन्तज़ार में ग़र बेज़ार रहते हैं
हम भी चंद्रिका की आस में दिन बेढब बिताए हैं ,
जज़्बातों औ हालातों को समझाकर यह बताये हैं
अज़ीज हो तुम्हीं मेरे दिल के यही यक़ीं दिलाए हैं
जाने क्या करिश्मा था तुम्हारी काफ़िर निगाहों में
वफ़ा की चाहत में तेरी यादों में ख़ुद को डुबाए हैं ,
कहा करते थे तुम हरदम मेरी नाज़नीन अदाएं हैं
गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत का वही अन्दाज़ दिखाए हैं
झोंका हवा का बन लुटे तुम्हीं शाम-ओ-सहर मेरा
हम वीरान आँखों में इंतज़ार का फ़ानूस सजाए हैं ,
वफ़ा की चाहत में तेरी यादों में ख़ुद को डुबाए हैं ,
कहा करते थे तुम हरदम मेरी नाज़नीन अदाएं हैं
गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत का वही अन्दाज़ दिखाए हैं
झोंका हवा का बन लुटे तुम्हीं शाम-ओ-सहर मेरा
हम वीरान आँखों में इंतज़ार का फ़ानूस सजाए हैं ,
हवाएं बहतीं मस्तानी छातीं जब घनघोर घटाएं हैं
कोकिलें तान सुनाती बाग़ों में जब आती बहारें हैं
शमन कर दे तपन दिल की वो सावन नहीं आता
फ़िज़ाओं कहो हरकारा बन पथ पे नैन बिछाए हैं ,
हरकारा-डाकिया
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैलसिंघ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें