मंगलवार, 6 अगस्त 2019

" तकिया पर कविता "

           तकिया पर कविता 


कितना  बदनसीब दामन है तकिया तेरा
नि:शब्द करवटों से कभी उकताती नहीं
होती गलगल हो अश्रुओं की हमदर्द बन
दर्द ख़ुदके सिरहाने से कभी बताती नहीं ।

हिलकतीं सिसकियों से बेतरतीब बिस्तर
सिलवटों की एकमात्र तूं चश्मदीद गवाह
इत्मिनान,सुकून,निश्चिन्तता की तूं हितैषी 
ईश्क़ के मारों से करती मुहब्बत बेपनाह ।

तोड़ सब्र का तटबन्ध आँसू नदी की तरह 
बसर ढूंढ़ते मन का समंदर हो तुम्हीं जैसे 
सबकी अन्तरंग खुशी भी भींच आगोश में
बन जाती  राजदार हमराज़  हो तुम्हीं जैसे ।

अनन्त पीर सह रखती स्मृतियां सहेजकर 
नितान्त एकान्त क्षणों की बन सहभागिनी
भर आग़ोश में तूं करती अद्भुत करिश्मा 
संग रोती दर्द का अवलंब बन सहचारिणी ।

माँ की ममता सरीखे है तकिया आँचल तेरा
दे थपकियां सुलाती सीने से लगा गा लोरियां
रोना,हंसना,खुशी,दर्द,ग़म,जुदाई,ज़ख़्मों पर
तकिया होती है निहाल लुटा नेह की झोरियां ।

तूं ज़ख़्म-ए-ज़िगर की एकमात्र अंकशायिनी
खुद को दबोचे जाने पर कभी कराहती नहीं
परिचारिका सी लवलीन जुती प्रेम रोगियों में
दर्द महसूसती खुदको कभी पुचकारती नहीं ।

बहुत ही खूबसूरत शहर  तकिया तन्हाई का
दरके रिश्तों से नाना किले निर्मित होते जहाँ
दिल पे चोट खाये आते खरीदने मरहम यहीं
कुछ दरबार सजा हैं मनाते रोज उत्सव जहाँ ।

  शैल सिंह

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 20 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत खूबसूरत शहर है तकिया तन्हाई का
    दरके रिश्तों से निर्मित नाना किले हों जहाँ
    दिल पर चोट खाये खरीदते हैं मरहम यहीं
    कुछ सजा दरबार मनाते रोज उत्सव जहाँ ।
    बहुत उम्दा सृजन सार्थक सुंदर।

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  3. वाह ... तकिये को अलग अलग अंदाज़ में देखना अच्छा लगा ...
    सुन्दर रचना ...

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  4. तकिया !!!
    अद्भुत लाजवाब ....
    वाह!!!

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