सोमवार, 14 मई 2018

गजल रूपी कविता

ऐ मेरे ख़ुदा--

जब-जब दस्तक दीं उम्मीदों पर आहटें
वज्र आकर गिरे तब-तब उन आहटों पर ,

घात बहुत सहीं मेरी मासूम चाहतें मग़र  
दुआ दे मुहर लगा दी तूने मेरी चाहतों पर ,

अति विश्वासों ने छल मुझे आहत किया
कृपा कर मरहम लगा दी तूने आहतों पर ,

हो गईं नाक़ाम साज़िशें मेरे क़ातिलों की 
रब ना करना रहम इन ग़द्दार क़ातिलों पर ,

मुद्दतों बाद मिली आज मुझसे है मन्जिल 
ऐ ख़ुदा करना करम बस मेरी इबादतों पर ।

                            
                               शैल सिंह


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