रविवार, 8 मार्च 2015

'' महिला दिवस पर ''

महिला दिवस पर 

व्यवधानों से कर के दोस्ती
दिक्कतों की परवाह ना की  
तोड़ पांवों की बेड़ियां उनने 
ऊँची हौसलों को उड़ान दी  ,

संघर्ष बन गई ताक़त उनकी 
तय अंतरिक्ष की दूरी कर लीं  
पाल-पोस ख़्वाबों को अपने  
तराश मन्सूबों को निखार लीं ,

सशक्त कर भूमिकाओं को
ख़ुद को इक नई पहचान दीं 
तोड़कर मानकों की परिधियाँ
कुचली मनोवृत्ति को संवार लीं ,

ख़ाहिश नहीं महिमामण्डन की
कोई चाहत नहीं सहानुभूति की
भभक उठीं सदियों की वेदनायें 
उबलती सिसकियाँ जो दबी थीं ,

बेहतर समाज की वे भी भागीदार
प्रगतिशील हुईं आज़ की नारियाँ
परम्पराओं की तोड़ सींखचों को 
प्रतिभावान हुईं हमारी भी बेटियाँ ,

जरुरत है समाज की सोच में
संकीर्ण नजरिये में बदलाव की
वरना विवश हो ले लेंगी हाथ में 
ख़ुद निडर कमान विधान की ।
               
                                 शैल सिंह



4 टिप्‍पणियां:

  1. महिला दिवस को सार्थक करती एक रचना।

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  2. सबल बेटियों से ही सबल समाज का निर्माण होता है ... आज की नारियों को केंद्र बिन्दु में रख कर सार्थक रचना .... हार्दिक बधाई ...

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  3. नारी दिवस को सार्थक करती रचना ..भावपूर्ण ...

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