रविवार, 9 नवंबर 2014

मत हमसे हमारी उमर पूछिये

मत हमसे हमारी उमर पूछिये 



उमंगें-तरंगे जवां धड़कने हैं अभी
अभी अंगड़ाईयाँ लेतीं हिलोरें घनी
मत हमसे हमारी उमर पूछिये

धुँधला जाये जिसे देख जौहरे-आईना
अभी भी बसद रंग हृदय के आबाद हैं
कल्पनाओं का व्यापर करती नहीं मैं
महफ़िलों में अभी भी नूर की धाक है

मन के सितारों का चमकता गगन देखिये
मत हमसे हमारी उमर पूछिये ।

रंग और रेशा शरीर के हैं जर्जर मगर
उजले केशों में शक्ति की वही धार है
वहशत वही आज़ भी मेरे हर लम्स में
जीस्त वही आज भी अज्जाए-बहार है

ढली साँझ,चांदनी का खुशरंग जुनूँ देखिये
मत हमसे हमारी उमर पूछिये ।

सदा वंचित रखा खुद को जिस बात से
क़ायम रिश्ता था भींगती सांवली रात से
बेमक़सद गंवाई जिंदगी जो मैनें दहर में 
अभागिन इच्छाएं जागी अब हो मुखर हैं 

मौज़-ए-खूँ देखिये बस रंगे-तरब देखिये
मत हमसे हमारी उमर पूछिये ।

मलय-मारुत लजाएँ गति वही आज भी
इन हाथों भुजाओं में है बल वही आज भी
धुंधला गई रौशनी जर्जर मलिन गात है
ज़िन्दा हासिल-ओ-लाहासील ज़ज्बात हैं

नंगे-पीरी शर्मा जाये नैरंगे-नज़र देखिये
मत हमसे हमारी उमर पूछिये ,

क्यों पोपले मुँह पर देख आड़ी झुर्रियाँ
काया की देख ठहरी शिथिल शक्तियाँ
ढले यौवन की देखते क्यों पीत पत्तियाँ
नकारने से पहले जरा देखिये सुर्खियां

गर्दिशे-अय्याम मगर हुस्न-मह देखिये
मत हमसे हमारी उमर पूछिये ,

निर्वहन करते-करते दायित्वों की श्रृंखला
कृषकाय जवां दिल की तन की हुई मेखला
हसरतों के द्वार दबी थी जो अधखिली कली
आज फ़ुर्सत में मुरादों की देखो बांछें खिली

गई ऋतु में भी आलम मुझमें वही देखिये
मत हमसे हमारी उम्र पूछिये ।
                                          शैल सिंह

शब्द अर्थ ---
जौहरे-आईना--दर्पण की चमक , बसद रंग--सैकड़ों रंग
लम्स--रोयां , अज्जाए-बहार--वसंत ऋतु
मौज़-ए-खूँ --रक्त की तरंग , रंगे-तरब--आनंद का परिवर्तनशील रंग
हासिल-ओ-लाहासील--प्राप्य और अप्राप्य
नंगे-पीरी --वृद्धावस्था को लज्जित करने वाली
नैरंगे-नज़र--दृष्टि का सौंदर्य , गर्दिशे-अय्याम--दिनों का फेर
हुस्न-मह--चाँद का सौंदर्य 

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