शुक्रवार, 22 मई 2015

ओ बेवफ़ा

       ओ बेवफ़ा

मेरी वफ़ा का सिला क्या ,तूने दिया वो बेवफ़ा
अच्छी निभाई यारी ,संग यार के वो बेवफ़ा,

पूछते सभी सवाल मुझसे अनुत्तरित जुबां है
बदनीयत पे हैरां हूँ मैं ,वो इकरारे रुत कहाँ है
वो इकरारे रुत कहाँ है
रुसवा किया है तुमने ख़यालात को वो बेवफ़ा ,

जिस तरह से रेजा-रेजा मेरी अर्से-वफा हुई है
तूं भी रोये खूँ के आँसू अना घायल मेरी हुई है
अना घायल मेरी हुई है
हो ज़न्नत मुझे नसीब तुझे दोज़ख़ वो बेवफा ,

चकाचौंध दौलतों की तूने गिरवी ईमान रखा
बड़ी सादगी से मेरी शराफत पर अज़ाब रखा
शराफत पर अज़ाब रखा
इस गुनाह की तुझे खुद ख़ुदा सजा दे वो बेवफा

दिखाया नकली चेहरा ऐतबार का कतल कर
फूलों से ज़ख्म खायी काँटों से बच के चल कर
काँटों से बच के चल कर   
तेरा आशियां जले मेरा घर रौशन हो वो बेवफा ।

                                                             शैल सिंह

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

नव वर्ष मंगलमय हो

नव वर्ष मंगलमय हो  प्रकृति ने रचाया अद्भुत श्रृंगार बागों में बौर लिए टिकोरे का आकार, खेत खलिहान सुनहरे परिधान किये धारण  सेमल पुष्पों ने रं...